April 8, 2009

फिर यूँही

कुछ नया....

उन पत्तों को मैंने उगते देखा है,
उस डाली से, उस पेड़ पे
एक कलि से उभरते देखा है
हरे से भूरा होते देखा है
उन्ही को मैंने उस पेड़ से बिछ्ढ्ते देखा है
डाली को छोड़ कर मिटटी में मिलते देखा है
उन्ही को मैंने गुज़रते देखा है !!


और एक
प्यार होता नहीं, बस हो जाता है
दर्द मिलता नहीं बस मिल जाता है,
क्यूँ अपने अश्कों से मैं ये सवाल करूँ,
कि ये गिला रहता नहीं बस रह जाता है!!

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